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    चंदा मामा दूर के

    मामा मामा प्यारा मामा, चंदा मामा दूर के। मम्मी हरदम कहती रहती, तुम पुआ पकाते गुङ के ।। मामा मामा…..। मुन्ना विक्रम हुआ सयाना, मामा घर जाने को ठाना । चंद्रयान में बैठ के मुन्ना, निकल पङा है टूर पर ।। मामा मामा …..। मैं मामा घर जाऊंगा , दूध मलाई खाऊंगा । परकोठे पर चढकर उनके, अपना ध्वज फहराऊंगा । मामा मामा…..। जब मामा के घर तुम जाना, संभल संभल के कदम बढाना। जगह जगह जल गड्ढे होंगे, देखो मुन्ना फिसल ना जाना।। मामा मामा ……। प्रज्ञान रोवर साथ चलेगा, अतुलित अद्भुत काम करेगा। अशोक स्तंभ-इसरो प्रतीक का, कदम-कदम पर छाप छोङेगा ।। मामा मामा……..। दक्षिणी ध्रुव है बङा…

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    हिन्दी हैं हम

    हिन्दी विश्व की एक प्रमुख भाषा है । यह हिन्दुस्तानी भाषा की एक मानकीकरण रूप है । जिसमें संस्कृत के तत्सम और तदभव शब्दों का प्रयोग अधिकाधिक रूप में किया जाता है । विश्व की आर्थिक मंच के गणना अनुसार यह विश्व की दश शक्तिशाली भाषाओं में एक है । जहाँ तक इसके शब्द भण्डारण की बात है तो अभी तक एक सौ दो अरब, अट्ठत्तर करोड़, पच्चास लाख शब्दों का प्रयोग हुआ है और यदि इसी क्रम से नये शब्दों का प्रयोग होता रहे तो मान्यता है कि सौ से दो सौ बर्षों तक इसका शब्द भण्डार खाली नहीं होगा।मानक भाषा हिन्दी — मानक भाषा किसी देश अथवा राज्य…

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    शाश्वत प्रेम पिटक–मैंने यों प्यार किया

    क्व सूर्यप्रभवो वंशःक्व चाल्पविषयामतिः,तितीर्षुर्दुस्तरं महादुडुपेनास्मि सागरम् ।।बहुआयामी व्यक्तित्व , कलम के धनी,अक्षर उपासक, शब्द साधक, भावों का भक्त,नियमों का निवेदक, सर्व समभाव का समन्वयक, अहं शून्य,संसृति का सेवक, जयी छपरा माँझी सारण(बिहार) की मिट्टी का अखण्ड दीपक महामना डा०शिव दास पाण्डेय जी हिन्दी और अंग्रेज़ी भाषा के सशक्त्त ख्यातिप्राप्त विद्वान थे । सौम्यता,विनम्रता,सौहार्द आदि अनेकानेक अलभ्य गुणों के अतिरिक्त सतत स्वयं आगे बढना और साथ ही निःस्वार्थ भाव से अन्य लोगों को आगे बढाना, उसकी प्रतिभा को तराशना,उसे परिष्कृत करना निश्चयेन उनका यही गुण अन्य विद्वानों से अलग स्थापित करता है । वें स्वयं में मानो एक संस्था थे, एक पाढशाला थे जहाँ धूल भरे हीरे तराशे जाते रहे हैं,…

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    हौसलों की उङान

    सूबह से ही त्रिशा की माँ घर के हर एक कार्यो को यंत्रचालित सी करती जा रही थी । किन्तु बार-बार उसके मन में बस एक ही प्रश्न आकर खङा हो जाता कि क्या ! आज मेरी बेटी को देने की बारी है अपने डैने ?उसे याद है उसने कोशिश की थी एक दबी आवाज़ में अपनी अजब उङान भरने की पर नहीं भर सकी देर तक परिवार के नाम पर । एक लङकी की कैरियर को परिवार के संस्कार और मार्यादा का हवाला देते हुए कितनी बेरहमी से काट दिया गया था उसके स्वप्निल उङान के डैने को और धकेल दिया गया चुल्हा-चौका /जाता-ढेकी के घेरे में । बेबश…