शाश्वत प्रेम पिटक–मैंने यों प्यार किया
क्व सूर्यप्रभवो वंशःक्व चाल्पविषयामतिः,
तितीर्षुर्दुस्तरं महादुडुपेनास्मि सागरम् ।।
बहुआयामी व्यक्तित्व , कलम के धनी,अक्षर उपासक, शब्द साधक, भावों का भक्त,नियमों का निवेदक, सर्व समभाव का समन्वयक, अहं शून्य,संसृति का सेवक, जयी छपरा माँझी सारण(बिहार) की मिट्टी का अखण्ड दीपक महामना डा०शिव दास पाण्डेय जी हिन्दी और अंग्रेज़ी भाषा के सशक्त्त ख्यातिप्राप्त विद्वान थे । सौम्यता,विनम्रता,सौहार्द आदि अनेकानेक अलभ्य गुणों के अतिरिक्त सतत स्वयं आगे बढना और साथ ही निःस्वार्थ भाव से अन्य लोगों को आगे बढाना, उसकी प्रतिभा को तराशना,उसे परिष्कृत करना निश्चयेन उनका यही गुण अन्य विद्वानों से अलग स्थापित करता है । वें स्वयं में मानो एक संस्था थे, एक पाढशाला थे जहाँ धूल भरे हीरे तराशे जाते रहे हैं, साहित्य जगत को समृद्धशाली बनाये जाते रहे हैं। जहाँ से लौटते वक्त स्वतः मन में यह ज्ञान जागरित हो जाता था कि “स्व का तिरोभूत होना ही कैवल्य , मुक्ति और सन्यास है” तथा “स्व का छुटना ही जीवन का उल्लास, हास और व्यास है” । सत्यम् शिवम् सुन्दरम् की परिकल्पना, उसकी चाहत, उसके उतुंग शिखरभाव को आत्मसात करते हुए प्रत्येक उद्यम को कार्यान्वित करने के पश्चात ही तो मानव से महामानव बना जा सकता है , अमरता का मार्ग प्रस्स्थ हो सकता है । क्योंकि इस जङ-जंगम संसार में अपनी जीत, अपनी अमरता, अपना स्तीत्व प्यार के द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है । लेकिन वह प्यार निश्छल,निर्मल एवं शाश्वत होनी चाहिए। यह तभी सम्भव है जब हम प्यार का कर्म योगी बनेंगे। कहा भी गया है कि– योगस्य चितवृति निरोधः
जब चित की चंचलता, छिछोङेपन, पलायनवादी पागलपन, वासनात्मक भावनाऐ समाप्त हो जाती है तब वहाँ कोई शाश्वत प्यार का कर्म योगी विजयी भाव से कह उठता है — मैंने यूं प्यार किया
डा०शिवदास पाण्डये जी द्वारा रचित यह प्रेम गीत संकलन अबतक के सभी स्थापित प्यार की परिभाषाएंं, प्राप्ती के मार्ग , इसकी अलभ्यता, दुरूहता से इतर शाश्वत प्यार का मार्ग अपनाने का दर्शन है जो कभी खत्म नहीं होता । इसमें जहाँ सागर की गहराई है तो गंगा की पवित्रता भी है ,और है एक अलौकिक बेकाबू अहसास जो सबों में व्याप्त तो है लेकिन हम उस ईश्वर प्रदत अहसास को उस प्यार को कहाँ पहचान पाते है ? उसे अपने आचरण में कहाँ ढाल पाते है ? क्योंकि यह सबकी बात नहीं । इस प्यार की तलाश में अधिकांश लोग जीवन पर्यन्त भटकते रह जाते हैं, इसके पोथी को पढते ही रह जाते है —
पोथी पढी पढी जग मुआ
पंडित भया न कोई ।
ढाई आखर प्यार का ,
पढे सो पंडित होये ।।
लेकिन कवि गीतकार ने अवतक के सारे मिथक को ध्वस्त करते हुए प्रेम शास्त्र को पढा ही नहीं शाश्वत प्यार को पाया भी है । वह भी एक क्षण,एक दिन,एक जनम का नहीं वल्कि सातो जनम का प्यार पाया है– मन के मंदिर में है देवता प्यार का,
तन लगन में मगन एक धरम के लिए ।
एक दिन एक क्षण हम मिले क्या मिले,
बंध गये साथ सातों जनम के लिए ।।
शास्त्र मैंने पढा सब तुम्हारे लिए,
पर्वतों पर चढा बस तुम्हारे लिए ।
राग की साधना में लगा नित रहा,
गान मैंने गढा सब तुम्हारे लिए।।
सांसों की डोर से निर्मित यह मानव का जीवन हर क्षण मानवीय संवेदनाओ का जाल ही तो है । सत्य तो यह है कि हमारा सम्पूर्ण जीवन एक पल की पूंजी है और पल जो क्षणभंगुर है इतना ही नहीं प्रत्येक पलों में भिन्नता भी होती है । कवि हृदय हर एक पल को कलमबद्ध करने की कोशिश किया है । मानव के जीवन चक्र को व्यख्यायित भी किया है–
स्मरण आज भी स्पर्श जादुई वह हर धङकन गान तुम्हारा, जीवन कैसे क्षणभंगुर यह—–
प्यार की बात करो,प्यार दिन रात करों।
श्वास विश्वास नहीं कब कहाँ रुक जाये ।।
जिन्दगी एक घङी-दो घङी चले न चले,
प्यार की बात करो ,प्यार दिन रात करो ।।
चंचल चपल मन कब उङ जाऊँ,
इक अनजान परिदा हूँ।
वैसे संग्रह का हरएक गीत सशक्त माध्यम है ,अतुलनीय सम्प्रेशण है प्रेम जागरण का । किन्तु मेरी राय ,मेरी धारणा,तथा मेरा विचार है, कि आँखों पर आधारित दोनों कविताये मैंने यूं प्यार किया गीत संग्रह की थीम कविता है *इस दोनों कविताओं में नायक और नायिका दोनों की आँखों के लिए अलंकारों का बङे ही मनोयोग से चयन किया गया है ——-
झील सी आँखे तुम्हारी ,
झील सी रहती न क्यों ।
है बरसती हर समय,
गंगोत्तरी की धार सी ।
अपि च——
बहुत दिनों से भटक रही थी,
ये आँखे तुम पे अटक गई है ।।
इन्हीं भावों के साथ मैं पुण्यात्मा महामना डा०शिव दास पाण्डेय जी के प्रति अपनी शाश्वत श्रधांजलि अर्पित करती हूँ।
ऊँ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ।।