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जय बोलो श्रीराम की
जयकारा एकबार लगाओ,जय बोलो सियाराम की ।घने कोहरे छट जायेगा,है पुण्य धरा श्री राम की । माटी का तेरा मेरा काया,माटी का व्यापार है।खिंच रहा छकङा शिव वाहन,फिर डरना बेकार है । कालचक्र सुख-दुख का पहिया,दौङ रहा अविराम है ।दूर गगन से निरख रहा ,सुर्यवंशी दिनमान है । है मंजिल कहाँ कहाँ रूकना है ।पूर्व सुनिश्चित भाल है।डर डर कर जीना फिर कैसा,निर्वल के बल राम है ।
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बुद्धं शरणम् गच्छामि
आज हर खासोआम इस सूक्ति को महात्मा बुद्ध की सूक्ति मान रहा है। जबकि यह सत्य से परे है।वह ऐसे कि यदि यह बुद्ध की सूक्ति होती तो फिर स्वयम् महात्मा बुद्ध भी “बुद्धं शरणम् गच्छामि “नहीं कहते। वे स्वयम् नित्य इन तीन सूक्तियों का पाठ अपनी दैनंदिनी क्रियाओं में किया करते थे। “बुद्धं शरणम् गच्छामिधम्मम् शरणम् गच्छामिसंघं शरणम् गच्छामि”। अर्थात् बुद्ध की शरण जाता हूँ।धर्म की शरण जाता हूँ।संघ की शरण जाता हूँ। अब ध्यातव्य यह है कि जो स्वयम् बुद्ध है वह किस बुद्ध की शरणागत होगा ?या तो इस बुद्व से परे भी कोई इतर बुद्ध होगा, जिसकी शरणागति वे करना चाहते हैं या फिर हम अर्थ…
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तुमसे बिछुड़े युग बीत गये,दर्द उदासी आज भी है।तन हीरे मोती पहने पर,मन संयासी आज भी है ।।
कृति शेष डा० महाराज कृष्ण जैन के सम्मान में श्रद्धांजलि के दो शब्द सुमन…….
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वेदों में पर्यावरण सुरक्षा
प्राणी जगत को सब ओर से आवरण देने वाली प्रकृति के अंग पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश, वायु आदि पर्यावरण कहे जाते है –परितः आवृणोतिश्रीमदभागवत् गीता में प्रकृति के उपरोक्त पाँच महाभूत के अतिरिक्त मन, बुद्धि एवं अहंकार रूप अंतःकरण त्रितय माने गये है । भूमिरापोनलो वायुः खं मनो वृद्धिरेवच ।अहंकारं इतीयं मे भिन्ना प्रकृतिरष्ट..यजुर्वेद में धौ,अंतरिक्ष, पृथ्वी ,जल,औषधि,वनस्पति ,विश्वेदेव, और ब्रह्मा को पर्यावरण का अंग माना गया है तथा इनके शुभ होने की कामना की गयी है — ओम धौ शान्तिरन्तरिक्ष शान्ति……। प्रदूषित पर्यावरण की भयावह विभिषिका से सूरक्षा हेतु वेदों में यज्ञ क्रिया का उपदेश दिया गया है । यज्ञ के पाँचों अंगों- समिधा,गोघृत,पात्र,मंत्र,भावना । समिधा के रूप में…
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बुल्ला की गवाही
फोन की घंटी घनघनाते ही तपेसर बाबु लपकते हुए फोन उठाकर बोलने लगे हाँ हैलो – आनंदी बेटा ! अरे भोला ड्राइवर गाङी लेकर तुम्हें लेने स्टेशन पहुँचता ही होगा । फोटों में तुम्हें कई बार देख चुका है , तुम्हें देखते ही पहचान भी लेगा , चिन्ता की कोई बात नहीं है । बस तुम आ जाओ । फिर बगल में बैठी अपनी पत्नी से कहने लगे-अपना टाऊन थाना है ना ! वहीं ज्वाइन करने के लिए आ रही है यह नई एस. पी. आनंदी किशोर उसी का फोन है भाई। बात यह है कि यह आनंदी और अपना तनवीर दोनो एक ही यू.पी.एस.सी बैच का पासाउट है और…
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दोहा में प्रतिविंबित मन
नारत्वं दुर्लभं लोके विधा तत्र सुदुर्लभा,कवित्वं दुर्लभं तत्र शक्तिस्तत्र सुदुर्लभा।।(साहित्य दर्पण)“सच ही मनुष्य योनि में जन्म लेना दुर्लभ है उससे भी अधिक दुर्लभ है कवि होना तथा इन तीनों के साथ शक्ति संपन्न होना तो अत्यन्त दुर्लभ है ।” इस उक्ति के संदर्भगत जब हम सरिता सिंह “स्नेहा”के कृतित्व और व्यक्तित्व पर दृष्टिपात करते है तो पाते है कि सरिता सिंह जी एक सहृदय मानुषी होने के साथ विद्या-वैभव सम्पन्न तो है ही एक सुविख्यात विदुषी भी है । चारों सुयोगों -संबलित इनकी सार्धम्य रचनाशीलता का दोहा प्रवाह सुस्ठु प्रमाण है । इस दोहा प्रवाह रचना विधान का अपना एक अलग तेजस एवं अर्थ गाम्भीर्य है । इसमे शब्द-शब्द का…
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साहित्य शिक्षा और भाषा विमर्श
साहित्य एक कला है , कला भावों की अभिव्यक्ति होती है जिसे मूर्त रूप देने के लिए एक साहित्यकार शब्दों का सहारा लेता है ।अतः शब्द कला का का भोग तत्व है । एक साहित्यकार साहित्य साधना में कुछ राजनैतिक,कुछ धार्मिक, कुछ व्यवहारिक,कुछ शिक्षाप्रद एवं कुछ मनोरंजनात्मक पक्ष इसी भोग तत्व के सहारे कलात्मक रूप साहित्य का सर्जन किया करता है । क्योंकि मनुष्य ही साहित्य का लक्ष्य होता है तथा साहित्य मनुष्यों द्वारा निर्मित होता है । आज तक कोई भी ऐसा फैक्ट्री नहीं बना है जहाँ मानव का निर्माण होता हो । एक साहित्य ही वह विधा है जो मनुष्य के अन्दर कर्मठता, करूणा, दया,प्रेम, सहानुभूति संवेदना आदि…
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सूर्य-तिलक
चलो अयोध्या आज चले हम,है सूर्य- तिलक श्रीराम का।विष्णु के अवतारी रघुवर,कौशल्या -सुत प्राण का ।।रामनवमी पावन पुनीत पर्व ,है जन्म दिवस श्रीराम का ।गूंज रहा चहूंओर राम धुन,जय जय जय श्रीराम का ।।होगा अद्भुत पावन वह क्षण,भानु-मयुख गर्भ-गृह आयेगी।राम लला के मस्तक पर वह,जब सूर्य तिलक लगायेगी।।चार मिनट तक दिव्य किरणें, ,रघुनंदन मुखङा निहारेगी।घङियाँ भी कर-जोङ के तत्क्षण,राम मंत्र दुहरायेगी ।।चलो अयोध्या आज चले हम...।
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मुहूर्त ज्वलितं श्रेयःन तु धूमायितं चिरम्
मिथिला की मिट्टी का विलक्षण विभूति, राजनीति के गगनाङ्गण का देदीप्यमान नक्षत्र,गंभीर चिंतक,प्रख्यात शिक्षाविद्, सुधी विचारक, समाजसेवी, लेखक, प्राध्यापक, काँग्रेस का गद्दावर नेता, अपने अग्रज भाई ललित नारायण मिश्र जी से राजनीति का ककहरा - पटु स्व. डा०जगन्नाथ मिश्र जी का जन्म बिहार के सुपौल जिला के अंतर्गत बसाउनपट्टी गाँव के प्रख्यात समाज सेवी , स्वतंत्रता सेनानी पंडित रविनंदन जी के यहाँ 24 जून 1937 को हुआ । आपके बहुआयामी व्यक्तित्व एवं सम्पूर्ण जीवन यात्रा में कोटिशः अनुकरणीय पङाव देखने को मिलता है जो एक सुदृढ समाज, एक सशक्त शैक्षणिक माहौल, कुशल राजनीति एवं विशुद्ध मानव मूल्यों को स्थापित करता है । 2015 में आप द्वारा लिखी गई पुस्तक "बिहार…
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बिहार के वो सात शहीद
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी,सदियों रहा है दुश्मन दौर -ए-जमाँ हमारा ।साल 1942 अगस्त क्रांति के दौरान 11अगस्त को दिन के दो बजे पटना सचिवालय के गुंबज पर तिरंगा फहराने के लिए बिहार के सात छात्र निकल पङे । जिन्हे एक एक कर उस समय के वर्तमान जिलाधिकारी डब्ल्यू जी आर्थर के आदेशनुसार पुलिस ने गोलियाँ चलानी शुरू कर दिया । जिसमें सबसे आगे जमालपुर के 14 बर्षीय देवीपद चौधरी मिलर हाई स्कूल के नौवी कक्षा के छात्र थे जिसे गिरते हुए देख पुनपुन हाई स्कूल के 10 वीं के छात्र पटना के दशरथा गाँव के रहने वाला राम गोविन्द सिंह तिरंगा को थामने आगे बढा फिर…